“यद् यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स: यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥“
अर्थात् श्रेष्ठ पुरुषों के आचरण का ही अनुकरण सामान्य मनुष्य करते हैं। अतः उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे स्वयं के आचरण को आदर्श एवं पवित्र बनाएँ। श्रीकृष्ण का जीवन चरित्र भी महापुरुषों की श्रेणी में पुरुषोत्तम है उसी उपलक्ष्य में आज गुरुकुल नीलोखेड़ी परिसर में सभी ब्रह्मचारियों के द्वारा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में यज्ञ किया गया। यज्ञ के उपरान्त कक्षा नौवीं से अभिनव एवं कक्षा दसवीं से आर्यमन ने सुन्दर भजन के माध्यम से बताया कि भारत को श्रीकृष्ण के ज्ञान एवं कर्म के उपदेश की पुनः आवश्यकता है।
पवित्र आर्य ने बताया कि श्रीकृष्ण का जीवन-चरित्र प्रत्येक मनुष्य के लिए अनुकरणीय है। ऋषि दयानन्द ने श्रीकृष्ण के बारे में कहा है कि “उन्होंने जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त कोई भी गलत कार्य नहीं किया”। बचपन से ही श्रीकृष्ण तीव्र बुद्धि एवं बलिष्ठ शरीर के धनी थे। गृहस्थाश्रम पूर्व ब्रह्मचर्य को धारण कर उनके द्वारा योगाभ्यास एवं युद्धनीति का पूर्ण अभ्यास किया गया। महाभारत में लिखित है कि श्रीकृष्ण प्रतिदिन यज्ञ एवं संध्या करते थे।
“प्रातरुत्थाय कृष्णस्तु कृतवान् सर्वमाह्निकम्।
ब्राह्मणैरम्भुज्ञातः प्रययौ नगरं प्रति।।“
अर्थात कृष्ण प्रातःकाल उठकर आह्निक (संध्या एवं हवन) सब क्रियाएं सम्पन्न कर विद्वानों से आज्ञा लेकर नगर को जाते थे। महाभारत में श्रीकृष्ण का लोकादर्श-समन्वित चरित्र उपस्थित है। हमें कृष्ण जन्माष्टमी पर यह संकल्प लेना चाहिए कि जनहित में सभी मनुष्य असत्यता को मिटाकर हमेशा धर्म के मार्ग पर चलें क्योंकि लिखा गया है-“यतो धर्मस्ततः कृष्णो यतः कृष्णस्ततो जयः” अर्थात् जहाँ कृष्ण हैं वहाँ धर्म है और जहाँ धर्म है वहाँ विजय है।
आप सभी को भाद्रपद कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।