नित्यं यजस्व मनं यजस्व
नित्यं यजस्व मनं यजस्व

।।नित्यं यजस्व मनं यजस्व।।
"नित्य यज्ञ" का अर्थ यह है कि व्यक्ति को न केवल बाहरी क्रियाओं में शुद्धता रखनी चाहिए, बल्कि अपने अंतःकरण को भी स्वच्छ बनाना चाहिए। यह केवल घृत-सामग्री की आहुति तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे विचार, कर्म और व्यवहार का परिष्कार भी इसमें समाहित है।
ब्रह्मचारियों को प्रतिदिन सायंकालीन होने वाले यज्ञ में आज प्रधानाचार्य ने अंतर्विद्यालय मूल्य-बोध प्रतियोगिता के द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों को महर्षि दयानन्द सरस्वती विरचित व्यवहार-भानु, आर्योद्देश्य रत्नमाला एवं बाल-सत्यार्थ प्रकाश इनके अतिरिक्त प्रथम स्थान प्राप्त करने वालों को महर्षि दयानन्द चरित्र एवं उनके शास्त्रार्थ के संस्मरण नामक पाँच पुस्तकों का सेट प्रदान किया। आर्य समाज के 150 वर्ष एवं महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती गुरुकुल परिसर में सभी छात्र वैदिक गतिविधियों में पूर्ण उत्साह के साथ भाग लेकर उत्सव के रूप में मना रहे हैं। यह मानव-निर्माण के सर्वश्रेष्ठ वर्ष हैं जो हमारे जीवन में आदर्शों एवं मूल्यों का निर्माण करते हैं।
अंत में सम्बोधित करते हुए प्रधानाचार्य ने बताया कि गुरुकुल शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को न केवल ज्ञान देना है, बल्कि उनमें अच्छे संस्कार, चरित्र निर्माण, और समाज के प्रति कर्तव्यबोध विकसित करना भी है। हर छात्र को अपनी योग्यता और सतत परिश्रम से एक नई पहचान बनानी चाहिए।